1 Somnath Jyotirlinga pauranik katha|सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा जानकर हो जायेंगे चकित जानें

Somnath pauranik katha | Photo : Wikimedia commons
Somnath Jyotirlinga pauranik katha : भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों (Barah Jyotirlinga) में से सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का प्रथम ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के संबंध में पुराणों में कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है:-
जब दक्ष प्रजापति ने अपनी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह चंद्रमा के साथ कर दिया तो वे अत्यंत प्रसन्न और ख़ुश थे। उनकी पुत्रियाँ भी चंद्रमा को अपने स्वामी के रूप में पा बहुत ख़ुश थीं लेकिन चंद्रमा को सभी सत्ताइस पत्नियों में से रोहिणी अत्यधिक प्रिय थीं। वह रोहिणी को सबसे अधिक प्रेम करते तथा उसे विशेष सम्मान भी देते थे।
अन्य पत्नियों से उन्हें विशेष मोह नहीं था। चंद्रमा के अपने प्रति उदासीन व्यवहार के कारण बाक़ी दक्ष पुत्रियाँ बहुत दुखी थीं। इस समस्या के समाधान के लिए वे अपने पिता दक्ष की शरण में गयीं और उन्हें अपने कष्टों के बारे में बताया।
अपनी पुत्रियों से चन्द्रमा के उदासीन व्यवहार का वृतांत सुनकर दक्ष बड़े दुखी हुए। इस संबंध में दक्ष ने चंद्रदेव से मुलाकात की और शांतिपूर्ण ढंग से कहा, ‘कलानिधे! तुमने निर्मल और उच्च कुल में जन्म लिया है, फिर भी तुम अपनी पत्नियों के साथ भेदभावपूर्ण करते हों। तुम्हारे साथ विवाहित सभी स्त्रियों का तुम पर बराबर हक है और तुम्हारा धर्म बनता है कि तुम सभी के साथ समान व्यवहार करो।
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तुम किसी को अधिक प्यार करते हो किसी को कम प्यार करते हो, ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों हैं? अब तक जो भेदभावपूर्ण व्यवहार तुमने अपनी पत्नियों के साथ किया। वह ठीक नहीं है, अब से ऐसा दुर्व्यवहार तुम्हें नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति आत्मीयजनों के साथ विषमतापूर्ण व्यवहार करता है, उसे नर्क में भी जगह नहीं मिलती।

इस प्रकार प्रजापति दक्ष ने अपने दामाद चन्द्रमा को प्रेमपूर्वक समझाया और चन्द्रमा अपने व्यवहार में परिवर्तन लायेंगे। ऐसा सोच प्रजापति दक्ष वापस लौट आए।
प्रेमपूर्वक समझाने के बाद भी चंद्रमा के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया। अब रोहिणी के प्रति चंद्रमा की आशक्ति और बढ़ती चली गयी तथा अन्य पत्नियों के प्रति उदासीन व्यवहार बढ़ता चला गया। जब दक्ष प्रजापति को अपने दामाद के दोहरे रवैये का पता चला तो वे बहुत दुखी हुए। वे एक बार फिर चंद्रमा के पास आकर उन्हें उत्तम नीति के तहत समझाने लगे और चन्द्रमा से न्यायोचित बर्ताव करने की प्रार्थना भी की।
लेकिन चन्द्रमा के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया। इस पर क्रोधित हो दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को श्राप दे दिया। दक्ष ने कहा, ‘मेरे प्रेमपूर्वक आग्रह करने पर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी, इसलिए मैं तुम्हें क्षय रोग का श्राप देता हूँ। श्राप देते ही क्षण भर में चंद्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गये।
चन्द्रमा के क्षीण होते ही चारों तरफ हाहाकार मच गया। सभी देवगण तथा ऋषिगण भी चिंतित हो गये। चंद्रमा ने अपनी अस्वस्थता इंद्र तथा अन्य देवताओं को बताई। सभी चंद्रमा की सहायता के लिए सामूहिक रूप से ब्रह्मा जी के पास गये। ब्रह्मा जी ने कहा कि जो घटना घट चुकी है उसे बदला नहीं जा सकता। उसे भुगतना ही पड़ेगा। साथ ही उन्होंने कहा, वैसे भी दक्ष के निश्चय को पलटा नहीं जा सकता। देवताओं के बार-बार आग्रह करने पर अंत में ब्रह्मा जी ने चन्द्रमा को दक्ष के श्राप से मुक्त होने का एक उत्तम उपाय बताया।
ब्रह्मा जी ने कहा कि चन्द्रमा देवताओं के साथ कल्याण कारक शुभ प्रभास क्षेत्र में जाकर शिवलिंग की स्थापना करें और शुभ मृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान करते हुए श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की आराधना करें। अगर चन्द्रमा की आराधना और तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हो गये तो वे जरूर चंद्रमा को क्षय रोग मुक्त कर देंगे। ब्रह्मा जी के कहे अनुसार सभी लोग प्रभास क्षेत्र पहुँच गये।

शिव लिंग की स्थापना के बाद चन्द्रदेव ने भगवान शिव की उपासना शुरू की। वे भगवान शिव और मृत्युंजय मंत्र के जाप में इतना तल्लीन हो गये कि छह माह तक निरंतर तपस्या की और वृषभ ध्वज का पूजन किया। चंद्रदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान शिव ने कहा, ‘चन्द्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो। तुम जिस लिए यह कठोर तपस्या कर रहे हो, अपनी उस अभिलाषा को बताओ। मै तुम्हारी इच्छानुसार तुम्हें उत्तम वरदान दूंगा। चन्द्रमा ने विनयभाव से कहा, ‘देवेश्वर! आप मेरे समस्त अपराधों को क्षमा करें और मेरे शरीर के इस क्षयरोग को दूर कर दें। जवाब में देवेश्वर ने कहा, इस श्राप को पूरी तरह सही करना संभव नहीं है।
भगवान शिव ने कहा, ‘चंद्रदेव तुम्हारी कला प्रतिदिन एक पक्ष में क्षीण हुआ करेगी, जबकि दूसरे पक्ष में प्रतिदिन निरंतर बढ़ती रहेगी। इस प्रकार तुम पूरी तरह स्वस्थ हो जाओगे। भगवान शिव का कृपा रूपी प्रसाद पा चन्द्रदेव अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने श्रद्धापूर्वक शंकर जी की स्तुति की। ऐसी स्थिति में निराकार शिव उनकी दृढ़ भक्ति को देखकर साकार लिंग रूप में प्रकट हुए और संसार में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस तरह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग है।

के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल । Important FAQs
सोमनाथ मंदिर का इतिहास क्या है? । What is the history of Somnath temple?
सोमनाथ मंदिर गुजरात के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जिसे श्री शैलेंद्र भगवान शिव के लिए अत्यधिक महत्त्व दिया गया है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में अदृश्य राजा भिमदेव प्रथम द्वारा किया गया था।
बारह ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग का क्या नाम है? । What is the name of the first Jyotirlinga among the twelve Jyotirlingas?
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग