Ramayan Manka 108 | रामायण मनका 108 का नित्य करें जाप बिगड़े काम बनेंगे

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Ramayan Manka 108

Ramayan Manka 108 | रामायण मनका 108 जपने के लाभ

Ramayan Manka 108 : रामायण हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ है| इस पवित्र ग्रंथ में भगवान राम का जीवन दर्शन और व्यक्तित्व की सुंदर झांकी देखने को मिलती हैं| यह ग्रंथ हमें धर्म परायण बातें सिखाती हैं| इसी रामायण (Ramayan manka 108) को केंद्र बनाकर पंडित जवाहरलाल ने रामायण मनका 108 लिखी| रामायण मनका 108 का नित्य जाप करने से प्रभु श्रीराम (lord Rama) की कृपा प्राप्त होती है और मनुष्य सभी दु:खों से मुक्त हो जाता है|

भगवान राम के अन्य नाम और अर्थ | Other names of Lord Ram

  • रामचंद्र :- इस नाम से भगवान राम को विशेष रूप से जाना जाता है।
  • रघुनंदन :- यह नाम उनके पुरखों के वंश के प्रतिनिधित्व को दर्शाता है।
  • राघव :- यह नाम उनके पिता राजा दशरथ के वंशज के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • राजेंद्र :- इस नाम से भगवान राम को ‘राजा’ या ‘राजनायक’ के रूप में जाना जाता है।
  • जानकीवल्लभ :- यह नाम उनकी पत्नी सीता के साथ प्रेम संबंध को व्यक्त करता है।
  • श्रीराम :- यह नाम भगवान राम की महिमा और महत्ता का वर्णन करता है।
  • सीतापति :- यह नाम भगवान राम को सीता के पति के रूप में पुकारता है।
  • दशरथनंदन :- इस नाम से भगवान राम को उनके पिता राजा दशरथ के पुत्र के रूप में जाना जाता है।
  • विष्णु :- यह नाम भगवान विष्णु के एक अवतार के रूप में उपयोग किया जाता है, जिनमें भगवान राम भी शामिल हैं।
  • धर्मराज :- यह नाम उनके धर्मपरायण और न्यायप्रिय स्वभाव को दर्शाता है।

माता सीता के अन्य नाम और अर्थ | Other names and meanings of Mata Sita

  • जानकी :- सीता माता को “राजा जनक की पुत्री” के रूप में जाना जाता हैं, क्योंकि वह मिथिला राज्य के राजा जनक की पुत्री थी।
  • भूमिजा :- यह नाम माता सीता के “भूमि से उत्पन्न” होने के संदर्भ में है।
  • वैदेही :- माता सीता को “राजा विदेह की पुत्री” के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि वह जनकपुर के राजा जनक की पुत्री थी।
  • राघवनंदिनी :- यह नाम माता सीता को भगवान राम की जीवनसंगिनी को दर्शता हैं।
  • सियावर :- इस नाम से माता सीता को भगवान राम की जीवनसंगिनी के रूप में जाना जाता है।
  • जानकिनंदिनी :- इस नाम से माता सीता को जनक की पुत्री होने के संबंध को बताता है|
  • अपराजिता :- यह नाम माता सीता के अविनाशी और अपराजित स्वभाव को दर्शाता है। 
Ramayan Manka 108
Ramayan Manka 108 |रामायण मनका 108

रामायण मनका 108 |  Ramayan Manka 108

रघुपति राघव राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥

 

जय रघुनन्दन जय घनश्याम ।

पतितपावन सीताराम ॥

 

भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे ।

दूर करो प्रभु दुःख हमारे ॥

 

दशरथ के घर जन्मे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१॥

 

विश्वामित्र मुनीश्वर आये ।

दशरथ भूप से वचन सुनाये ॥

 

संग में भेजे लक्ष्मण राम ।

पतितपावन सीताराम ॥२॥

 

वन में जाय ताड़का मारी ।

चरण छुआए अहिल्या तारी ॥

 

ऋषियों के दुःख हरते राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३॥

 

जनक पुरी रघुनन्दन आए ।

नगर निवासी दर्शन पाए ॥

 

सीता के मन भाये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥४॥

 

रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया ।

सब राजों का मान घटाया ॥

 

सीता ने वर पाये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥५॥

 

परशुराम क्रोधित हो आये ।

दुष्ट भूप मन में हरषाये ॥

 

जनक राय ने किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६॥

 

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बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी ।

संत नहीं होते अभिमानी ॥

 

मीठी वाणी बोले राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७॥

 

लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो ।

जो कुछ दण्ड दास को दीजो ॥

 

धनुष तुडइय्या मैं हूं राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८॥

 

लेकर के यह धनुष चढ़ाओ ।

अपनी शक्ति मुझे दिखाओ ॥

 

छूवत चाप चढ़ाये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९॥

 

हुई उर्मिला लखन की नारी ।

श्रुति कीर्ति रिपुसूदन प्यारी ॥

 

हुई माण्डवी भरत के बाम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०॥

 

अवधपुरी रघुनन्दन आये ।

घर-घर नारी मंगल गाये

 

बारह वर्ष बिताये राम।

पतितपावन सीताराम ॥११॥

 

गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी ।

राज तिलक तैयारी कीनी ॥

 

कल को होंगे राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१२॥

 

कुटिल मंथरा ने बहकायी ।

कैकई ने यह बात सुनाई ॥

 

दे दो मेरे दो वरदान ।

पतितपावन सीताराम ॥१३॥

 

मेरी विनती तुम सुन लीजो ।

भरत पुत्र को गदी दीजो ॥

 

होत प्रात वन भेजो राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१४॥

 

धरनी गिरे भूप तत्काल ।

लागा दिल में सूल विशाल ॥

 

तब सुमंत बुलवाए राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१५॥

 

राम पिता को शीश नवाए ।

मुख से वचन कहा नहीं जाए॥

 

कैकयी वचन सुनायो राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१६॥

 

राजा के तुम प्राणों प्यारे ।

इनके दुःख हरोगे सारे ॥

 

अब तुम वन में जाओ राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१७॥

 

वन में चौदह वर्ष बिताओ।

रघुकुल रीति नीति अपनाओ ॥

 

आगे इच्छा तुम्हरी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१८॥

 

सुनत वचन राघव हर्षाए ।

माता जी के मन्दिर आये॥

 

चरण कमल में किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥१९॥

 

माता जी मैं तो वन जाऊं ।

चौदह वर्ष बाद फिर आऊं ॥

 

चरण कमल देखू सुख धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥२०॥

 

सुनी शूल सम जब यह बानी ।

भू पर गिरी कौशिला रानी ॥

 

धीरज बंधा रहे श्री राम ।

पतितपावन सीताराम ॥२१॥

 

सीताजी जब यह सुन पाई।

रंग महल से नीचे आई ॥

 

कौशल्या को किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम॥२२॥

 

मेरी चूक क्षमा कर दीजो ।

वन जाने की आज्ञा दीजो ॥

 

सीता को समझाते राम ।

पतितपावन सीताराम॥२३॥

 

मेरी सीख सिया सुन लीजो ।

सास ससुर की सेवा कीजिए ॥

 

मुझको भी होगा विश्राम ।

पतितपावन सीताराम ॥२४॥

 

मेरा दोष बता प्रभु दीजो ।

संग मुझे सेवा में लीजो ॥

 

अर्धांगिनी तुम्हारी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥२५॥

 

समाचार सुनि लक्ष्मण आए ।

धनुष बाण संग परम सुहाए ॥

 

बोले संग चलूंगा श्रीराम ।

पतितपावन सीताराम ॥२६॥

 

राम लखन मिथिलेशकुमारी ।

वन जाने की करी तैयारी ॥

 

रथ में बैठ गये सुख धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥२७॥

 

अवधपुरी के सब नर नारी ।

समाचार सुन व्याकुल भारी ॥

 

मचा अवध में अति कोहराम ।

पतितपावन सीताराम ॥२८॥

 

शृंगवेरपुर रघुवर आए ।

रथ को अवधपुरी लौटाए।

 

गंगा तट पर आए राम ।

पतितपावन सीताराम॥२९॥

 

केवट कहे चरण धुलवाओ ।

पीछे नौका में चढ़ जाओ

 

पत्थर कर दी नारी राम ।

पतितपावन सीताराम॥३०॥

 

लाया एक कठौता पानी ।

चरण कमल धोये सुखमानी ॥

 

नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३१॥

 

उतराई में मुदरी दीन्हीं।

केवट ने यह विनती कीन्हीं ॥

 

उतराई नहीं लूंगा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३२॥

 

तुम आए हम घाट उतारे ।

हम आयेंगे घाट तुम्हारे ॥

 

तब तुम पार लगाओ राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३३॥

 

भरद्वाज आश्रम पर आए ।

राम लखन ने शीष नवाए ॥

 

एक रात कीन्हां विश्राम ।

पतितपावन सीताराम॥३४॥

 

भाई भरत अयोध्या आए ।

कैकई को कटु वचन सुनाए।

 

क्यों तुमने वन भेजे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३५॥

 

चित्रकूट रघुनन्दन आए ।

वन को देख सिया सुख पाए॥

 

मिले भरत से भाई राम ।

पतितपावन सीताराम ॥३६ ॥

 

अवधपुरी को चलिए भाई ।

ये सब कैकई की कुटिलाई ॥

 

तनिक दोष नहीं मेरा राम ।

पतितपावन सीताराम॥३७॥

 

चरण पादुका तुम ले जाओ ।

पूजा कर दर्शन फल पावो॥

 

भरत को कंठ लगाए राम ।

पतितपावन सीताराम॥३८॥

 

आगे चले राम रघुराया ।

निशाचरों को वंश मिटाया॥

 

ऋषियों के हुए पूरन काम ।

पतितपावन सीताराम ॥३९॥

 

‘अनसुइया’ की कुटिया आये ।

दिव्य वस्त्र सिय मां ने पाये ॥

Ramayan Manka 108 |रामायण मनका 108
Ramayan Manka 108 |रामायण मनका 108

था मुनि अत्री का वह धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥४ ०॥

 

मुनिस्थान आए रघुराई ।

सूर्पनखा की नाक कटाई ॥

 

खरदूषन को मारे राम ।

पतितपावन सीताराम॥४१॥

 

पंचवटी रघुनन्द आए ।

कनक मृगा के संग में धाए॥

 

लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम ।

पतितपावन सीताराम ॥४२ ॥

 

रावण साधु वेष में आया ।

भूख ने मुझको बहुत सताया ॥

 

भिक्षा दो यह धर्म का काम ।

पतितपावन सीताराम ॥४३॥

 

भिक्षा लेकर सीता आई ।

हाथ पकड़ रथ में बैठाई ॥

 

सूनी कुटिया देखी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥४४॥

 

धरनी गिरे राम रघुराई ।

सीता के बिन व्याकुलताई ॥

 

हे प्रिय सीते, चीखे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥४५॥

 

लक्ष्मण, सीता छोड़ न आते।

जनक दुलारी को नहीं गंवाते ॥

 

बने बनाये विगड़े काम ।

पतितपावन सीताराम॥४६ ॥

 

कोमल बदन सुहासिनि सीते ।

तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते ॥

 

लगे चांदनी-जैसे घाम

पतितपावन सीताराम ॥४७॥

 

सुन री मैना, रे तोता ।

सुन मैं भी पंखो वाला होता ॥

 

वन वन लेता ढूँढ तमाम ।

पतितपावन सीताराम॥४८॥

 

श्यामा हिरनी तू ही बता दे ।

जनक नन्दनी मुझे मिला दे॥

 

तेरे जैसी आंखें श्याम।

पतितपावन सीताराम ॥४९॥

 

वन वन ढूंढ रहे रघुराई ।

जनक दुलारी कहीं न पाई॥

 

गिद्धराज ने किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥५०॥

 

चखचख कर फल शबरी लाई ।

प्रेम सहित खाए रघुराई ॥

 

ऐसे मीठे नहीं हैं आम ।

पतितपावन सीताराम ॥५१॥

 

विप्र रूप धरि हनुमत आए।

चरण कमल में शीश नवाए॥

 

कन्धे पर बैठाये राम।

पतितपावन सीताराम ॥५२॥

 

सुग्रीव से करी मिताई ।

अपनी सारी कथा सुनाई ॥

 

बाली पहुंचाया निज धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥५३॥

 

सिंहासन सुग्रीव बिठाया ।

मन में वह अति ही हर्षाया ॥

 

वर्षा ऋतु आई हे राम ।

पतितपावन सीताराम॥५४॥

 

हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ ।

वानरपति को यूं समझाओ ॥

 

सीता बिन व्याकुल हैं राम ।

पतितपावन सीताराम ॥५५॥

 

देश देश वानर भिजवाए ।

सागर के सब तट पर आए ॥

 

सहते भूख प्यास और घाम ।

पतितपावन सीताराम ॥५६॥

 

सम्पाती ने पता बताया ।

सीता को रावण ले आया ॥

 

सागर कूद गये हनुमानजी ।

पतितपावन सीताराम ॥५७॥

 

कोने कोने पता लगाया ।

भगत विभीषन का घर पाया॥

 

हनूमान ने किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥५८॥

 

अशोक वाटिका हनुमत आए ।

वृक्ष तले सीता को पाए॥

 

आंसू बरसे आठों याम ।

पतितपावन सीताराम ॥५९॥

 

रावण संग निशचरी लाके ।

सीता को बोला समझा के ॥

 

मेरी ओर तो देखो बाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६०॥

 

मन्दोदरी बना दूं दासी ।

सब सेवा में लंका वासी ॥

 

करो भवन चलकर विश्राम ।

पतितपावन सीताराम ॥६१॥

 

चाहे मस्तक कटे हमारा ।

मैं देखूं न बदन तुम्हारा ॥

 

मेरे तन मन धन हैं राम ।

पतितपावन सीताराम ॥६२॥

 

ऊपर से मुद्रिका गिराई ।

सीता जी ने कंठ लगाई ॥

 

हनूमान जी ने किया प्रणाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६३॥

 

मुझको भेजा है रघुराया ।

सागर कूद यहां मैं आया ॥

 

मैं हूं राम दास हनुमान ।

पतितपावन सीताराम ॥६४॥

 

भूख लगी फल खाना चाहूँ ।

जो माता की आज्ञा पाऊँ ॥

 

सब के स्वामी हैं श्रीराम ।

पतितपावन सीताराम॥६५॥

 

सावधान होकर फल खाना ।

रखवालों को भूल न जाना ॥

 

निशाचरों का है यह धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६६॥

 

हनूमान ने वृक्ष उखाड़े ।

देख देख माली ललकारे ॥

 

मार-मार पहुंचाये धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥६७॥

 

अक्षयकुमार को स्वर्गपहुंचाया।

इन्द्रजीत फाँसी ले आया ॥

 

ब्रह्मफाँस से बंधे हनुमान ।

पतितपावन सीताराम ॥६८॥

 

सीता को तुम लौटा दीजो ।

उन से क्षमा याचना कीजो ॥

 

तीन लोक के स्वामी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥६९॥

 

भगत विभीषण ने समझाया ।

रावण ने उसको धमकाया ॥

 

सनमुख देख रहे हनुमान ।

पतितपावन सीताराम॥७०॥

 

रुई, तेल, घृत, वसन मंगाई ।

पूँछ बाँध कर आग लगाई ॥

 

पूँछ घुमाई है हनुमान ।

पतितपावन सीताराम ॥७१॥

 

सब लंका में आग लगाई ।

सागर में जा पूँछ बुझाई॥

 

हृदय कमल में राखे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७२॥

 

सागर कूद लौट कर आए ।

समाचार रघुवर ने पाए ॥

 

जो मांगा सो दिया इनाम ।

पतितपावन सीताराम ॥७३॥

 

वानर रीछ संग में लाए ।

लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए ॥

 

लगे सुखाने सागर राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७४॥

 

सेतू कपि नल नील बनावें ।

राम राम लिख सिला तिरावें ॥

 

लंका पहुंचे राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७५॥

 

अंगद चल लंका में आया ।

सभा बीच में पांव जमाया॥

 

बाली पुत्र महा बलधाम ।

पतितपावन सीताराम ॥७६॥

 

रावण पांव हटाने आया ।

अंगद ने फिर पांव उठाया ॥

 

क्षमा करें तुझको श्री राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७७॥

 

निशाचरों की सेना आई ।

गरज गरज कर हुई लड़ाई ॥

 

वानर बोले जय सिया राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७८॥

 

इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई ।

धरनी गिरे लखन मुरझाई ॥

 

चिन्ता करके रोये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥७९॥

 

जब मैं अवधपुरी से आया ।

हाय पिता ने प्राण गंवाया ॥

 

बन में गई चुराई बाम ।

पतितपावन सीताराम ॥८०॥

 

भाई तुमने भी छिटकाया ।

जीवन में कुछ सुख नहीं पाया ॥

 

सेना में भारी कोहराम ।

पतितपावन सीताराम ॥८१॥

 

जो संजीवनी बूटी को लाए ।

तो भाई जीवित हो जाये ॥

 

बूटी लाये तब हनुमान ।

पतितपावन सीताराम ॥८२॥

 

जब बूटी का पता न पाया ।

पर्वत ही लेकर के आया ॥

 

काल नेम पहुँचाया धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥८३॥

 

भक्त भरत ने बाण चलाया ।

चोट लगी हनुमत लंगड़ाया ॥

 

मुख से बोले जय सिया राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८४॥

 

बोले भरत बहुत पछताकर ।

पर्वत सहित बाण बैठाकर ॥

 

तुम्हें मिला दूं राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८५॥

 

बूटी लेकर हनुमत आया ।

लखन लाल उठ शीश नवाया ॥

 

हनुमत कंठ लगाये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८६॥

 

कुम्भकरन उठकर तब आया।

एक बाण से उसे गिराया ॥

 

इन्द्र जीत पहुँचाया धाम ।

पतितपावन सीताराम ॥८७॥

 

दुर्गापूजन रावण कीनो ।

नौ दिन तक आहार न लीनो ॥

 

आसन बैठ किया है ध्यान ।

पतितपावन सीताराम ॥८८॥

 

रावण का व्रत खंडित कीना ।

परम धाम पहुँचा ही दीना ॥

 

वानर बोले जय सिया राम ।

पतितपावन सीताराम ॥८९॥

 

सीता ने हरि दर्शन कीना ।

चिन्ता शोक सभी तज दीना ॥

 

हँस कर बोले राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९०॥

 

पहले अग्नि परीक्षा पाओ।

पीछे निकट हमारे आओ ॥

 

तुम हो पतिव्रता हे बाम ।

पतितपावन सीताराम ॥९१॥

 

करी परीक्षा कंठ लगाई ।

सब वानर सेना हरषाई॥

 

राज्य विभीषन दीन्हा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९२॥

 

फिर पुष्पक विमान मंगवाया ।

सीता सहित बैठि रघुराया॥

 

दण्डकवन में उतरे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९३॥

 

ऋषिवर सुन दर्शन को आए ।

स्तुति कर मन में हर्षाये॥

 

तब गंगा तट आये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९४॥

 

नन्दी ग्राम पवनसुत आए ।

भगत भरत को वचन सुनाए ॥

 

लंका से आए हैं राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९५॥

 

कहो विप्र तुम कहां से आए ।

ऐसे मीठे वचन सुनाए॥

 

मुझे मिला दो भैया राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९६॥

 

अवधपुरी रघुनन्दन आये ।

मन्दिर मन्दिर मंगल छाये ॥

 

माताओं को किया प्रणाम ।

पतिल्पावन सीताराम ॥९७॥

 

भाई भरत को गले लगाया ।

सिंहासन बैठे रघुराया ॥

 

जग ने कहा, हैं राजा राम ।

पतितपावन सीताराम ॥९८॥

 

सब भूमि विप्रो को दीन्हीं ।

विप्रों ने वापस दे दीन्हीं ॥

 

हम तो भजन करेंगे राम ।

पतितपावन सीताराम॥९९॥

 

धोबी ने धोबन धमकाई ।

रामचन्द्र ने यह सुन पाई ॥

 

वन में सीता भेजी राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१००॥

 

बाल्मीकि आश्रम में आई ।

लव व कुश हुए दो भाई ॥

 

धीर वीर ज्ञानी बलवान ।

पतितपावन सीताराम ॥१०१॥

 

अश्वमेघ यज्ञ कीन्हा राम ।

सीता बिनु सब सूने काम ॥

 

लव कुश वहाँ लियो पहचान ।

पतितपावन सीताराम ॥१०२॥

 

सीता राम बिना अकुलाई ।

भूमि से यह विनय सुनाई ॥

 

मुझको अब दीजो विश्राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०३॥

 

सीता भूमी माहि समाई ।

देखकर चिन्ता की रघुराई ॥

 

बार-बार पछताये राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०४॥

 

राम राज्य में सब सुख पावें ।

प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें॥

 

दुःख कलेश का रहा न नाम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०५॥

 

ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता ।

राज कीन्ह श्री लक्ष्मी कंता ॥

 

फिर बैकुण्ठ पधारे राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०६॥

 

अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई ।

नर-नारी सबने गति पाई ॥

 

शरनागत प्रतिपालक राम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०७॥

 

श्याम सुन्दर’ ने लीला गाई ।

मेरी विनय सुनो रघुराई ॥

 

भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम ।

पतितपावन सीताराम ॥१०८॥

 

यह माला पूरी हुई, मनका एक सौ आठ।

मनोकामना पूर्ण हो, नित्य करे जो पाठ॥

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Important FAQ

रामायण मनका 108 क्या है? | What is Ramayan Manka 108?

मनका 108 रामायण की एक खास रचना है जिसमें रामायण के महत्वपूर्ण किस्से और चरित्र का विस्तार से वर्णन किया गया हैं।

मनका 108 का उद्देश्य क्या है? | What is the purpose of Manka 108?

मनका 108 का मुख्य उद्देश्य रामायण के महत्वपूर्ण संदेशों को सरलता से समझाना और जनता को धार्मिक ज्ञान देना है।

कौन-कौन से किस्से मनका 108 में शामिल हैं? | Which tales are included in Manka 108?

मनका 108 में सीता स्वयंवर, रावण का वध, हनुमान का लंका प्रवेश, सुग्रीव और बाली का युद्ध, लक्ष्मण रेखा, सीता हरण आदि प्रसिद्ध किस्से शामिल हैं।

मनका 108 में कैसे किस्से प्रस्तुत किए गए हैं? | How are the tales presented in Manka 108?

मनका 108 में किस्से गायन और वादन के माध्यम से प्रस्तुत किए जाते हैं, जिसे समझना और याद करना आसान होता है।

रामायण मनका 108 किसके द्वारा संरचित किया गया है? | Ramayana Manaka 108 is composed by?

मनका 108 का संरचना और रचना कलाकार पंडित जवाहरलाल ने की थी।

मनका 108 की महत्ता क्या है? | What is the significance of bead 108?

मनका 108 रामायण की कथा को आसानी से समझने और याद करने का एक अद्वितीय तरीका है। इसके माध्यम से धार्मिक ज्ञान को व्यापक रूप से प्रसार किया जाता है।

मनका 108 में कितने भजन होते हैं? | How many bhajans are there in Manka 108?

मनका 108 में कुल मिलाकर 108 भजन होते हैं, जो रामायण के विभिन्न पहलुओं पर आधारित हैं।

मनका 108 का पाठ कैसे किया जाता है?

मनका 108 का पाठ विशेष रूप से ध्यान और भक्ति के साथ किया जाता है, जिससे संदेशों का अधिक से अधिक अर्थ निकलता है।

आज के समय में मनका 108 का महत्व क्या है? | What is the importance of Manka 108 in today’s time?

वर्तमान में मनका 108 रामायण के महत्वपूर्ण संदेशों को नए पीढ़ियों तक पहुंचाने का एक अद्वितीय और प्रभावी माध्यम है|

रामायण मनका 108 किसने लिखी? | Who wrote Ramayana Manka 108?

रामायण मनका 108 के रचयिता पंडित जवाहरलाल जी थे। उन्होंने इस मनके को संरचित और सम्पादित किया।

 

 

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