1. Paap kahan jata hain 2. क्या आप जानते हैं? गंगा में धोये पाप कहाँ जाते हैं?

Paap kahan jata hain
Paap kahan jata hain : एक बार एक ऋषि मुनि अपने आश्रम में बैठकर पाप के बारे में विचार कर रहे थे। उनके मन में आया कि लोग पाप करने के बाद गंगा जी में पाप धोने जाते हैं, तो इसका अर्थ यह हुआ कि सारे पाप गंगा में मिल गये और गंगा मैया भी पापी हो गयीं।
ऋषि मुनि ने इस बात को जानने के लिए तपस्या कि की आखिर पाप कहाँ जाता है?
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवता प्रकट हुए। उन्होंने देवता से पूछा, जो पाप गंगा में धोया जाता है, वह पाप आखिर जाता कहाँ है?
देवताओं ने जवाब में कहा, इस प्रश्न का उत्तर गंगा मैया ही दे सकती हैं। चलकर उनसे ही पूछा जाएँ। सभी लोग गंगा मैया के पास जाकर पूछते हैं, हे गंगे मैया! सब लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते हैं तो इसका अर्थ हुआ कि आप भी पापी हुईं।
गंगा मैया ने विनम्र भाव से कहा, मैं क्यों पापी हुई, मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को सौंप देती हूँ।
अब सभी लोग समुद्र के पास गये और कहा, हे सागर! गंगा मैया आपको सभी के पापों को अर्पित कर देती है तो इसका मतबल आप भी पापी हुए।
समुद्र ने कहा, मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को भाप बनाकर बादल को अर्पित कर देता हूँ।
अब सभी लोग बदल के पास गये और कहा कि, हे बादल! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते हैं तो इसका अर्थ आप पापी हुए?
बादल ने विनीत भाव से कहा, मैं क्यों पापी हुआ? मैं तो सारे पापों को वापस पानी में बदलकर अर्थात् वर्षा रूप में दुबारा धरती पर भेज देता हूँ। इसी पानी के उपयोग से धरती पर अन्न उपजता है और उस अन्न का सेवन मनुष्य करता है।

उस अनाज में जो अनाज जिस मानसिक स्थिति में उगाया जाता है और जिस प्रकार प्राप्त किया जाता है या जिस मानसिक अवस्था में उसका सेवन किया जाता है। उसी अनुसार मनुष्य की मानसिकता बनती है।
इसलिए कहा जाता है- जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन। अनाज को जिस वृति ( कमाई) से प्राप्त किया जाता है और जिस मानसिक अवस्था में उसका सेवन किया जाता, वैसे ही विचार मनुष्य के बनते हैं।
इसलिए हमेशा भोजन शांत चिर अवस्था में पूर्ण रुचि के साथ करना चाहिए। एक बात और अन्न जिस धन से खरीदा जाये, वह धन भी श्रम ( परिश्रम) का होना चाहिए।
Paap kahan jata hain के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल । Important FAQs
पाप क्या है? । What is sin?
पाप धार्मिक और नैतिक अपराधों का नाम है। इसके अंतर्गत अन्याय, कुरीतियाँ, अनैतिकता, भ्रष्टाचार, हिंसा, चोरी, बेईमानी, अत्याचार, अधर्म आदि शामिल हैं।
पुण्य क्या है? । What is virtue?
पुण्य धार्मिक और नैतिक कार्यों या उत्तम गुणों का नाम है, जो व्यक्ति की आत्मिक और सामाजिक उन्नति में सहायक होते हैं। यह नेक कर्म, दया, सच्चाई, त्याग, सेवा, शांति और सम्मान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
पाप के प्रभाव क्या होते हैं? । What are the effects of sin?
पाप के कारण व्यक्ति सांसारिक और आत्मिक दुखों का सामना कर सकता है। साथ ही जीवन की प्रगति में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।
पुण्य के लाभ क्या होते हैं? । What are the benefits of virtue?
पुण्य करने से व्यक्ति का मान बढ़ता है और उसका जीवन संतुलित होता है। साथ ही उसकी आत्मा को शांति और संतोष का अनुभव होता है।
क्या पाप और पुण्य का फल इस जीवन में ही मिलता है? । Do we get the fruits of sin and virtue in this life only?
नहीं, पाप और पुण्य का फल इस जीवन के अलावा भी मिल सकता है। कई धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में यह माना जाता है कि यह अगले जन्म में भी फल देता है।