Do you Know Lord Rama untold story 1 राम-भरत अनकही कथा के बारें में जानें

Lord Rama untold story
Lord Rama untold story : मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जीवन से जुड़ी अनेक कथाएं हम लोग सुन और पढ़ चुके हैं लेकिन अभी भी कुछ कथाएं ऐसी है जिनके बारे में राम भक्त नहीं जानते हैं| इसका कारण यह है कुछ कथाएं अभी भी पुस्तक रूप में ही उपलब्ध है और वर्तमान पीढ़ी इंटरनेट की है| जो सिर्फ़ इंटरनेट पर उपलब्ध राम कथा के बारे में जानती हैं|
द भक्तिटाइम्स की टीम ने ऐसे पाठकों को ध्यान में रखते हुए पुस्तक रूप में उपलब्ध कथाओं का संक्षिप्त अनुवाद करके निरंतर अपनी वेबसाइट Thebhaktitimes.com पर प्रकाशित करती रहती हैं| आज भी हम भगवान राम (राम-भरत अनकही कथा) से जुड़ी एक रोचक कथा लायें हैं| तो चलिए शुरू करते हैं|
राम रमैय्या गाय जा, राम से लगन लगाये जा।
राम ही तारे राम उबारे, राम नाम दोहराए जा..
एक दिन भरत ने अपने बड़े भैया भगवान श्री राम से पूछा भैया..माता कैकई ने आपको 14 वर्ष का बनवास दिया| उन्होंने इतना बड़ा स्वांग रचा, मंथरा जैसी दासी के कहने पर आपको इतने दिनों अपनों से दूर रखा, फिर भी आपने उन्हें क्षमा कर दिया क्यों?

उनके इस स्वांग के कारण अयोध्या के भावी नरेश और महारानी को 14 वर्ष का वनवास तो झेलना ही पड़ा| इसके अलावा पिता की दुखद मृत्यु का शौक और अयोध्या की प्रजा को अनके समस्याओं का सामना करना पड़ा सो अलग| सामान्यतः ऐसे में मृत्यु दंड देना चाहिए।
राम ने बड़ी शांति से भारत की बात सुनी और फिर मुस्कुराए..
बोले, “जानते हो भरत, किसी कुल में एक चरित्रवान और धर्मपरायण पुत्र जन्म लेता है तो उसका जीवन उसकी अनगिनत पीढ़ी के पितरो के अपराधों का प्रायश्चित कर देता है। जिस माँ ने तुम जैसे धर्म परायण भाई को जन्म दिया हो मैं भला उसे दंड कैसे दे सकता हूं
Lord Rama untold story आप द भक्तिटाइम्स.कॉम पर पढ़ रहे हैं|
राम के इस जवाब से भारत को संतुष्टि नहीं हुई वे बोले..
पर यह तो मोह है भइया, और राज्य का दण्डविधान मोह से मुक्त होता है। एक राजा की तरह उत्तर दीजिये कि आपने माता को दंड क्यों नहीं दिया, समझिए कि आपसे यह प्रश्न आपका अनुज नहीं, अयोध्या का एक सामान्य नागरिक कर रहा है।

राम चुपचाप भारत की बात सुनते रहे और कुछ क्षण के मौन के बाद बोले, “अपने सगे-सम्बन्धियों के किसी अपराध पर कोई दण्ड न देना ही इस सृष्टि का कठोरतम दण्ड है।
वैसे भी माता कैकई ने अपनी एक भूल का बड़ा कठोर दण्ड भोगा है। वनवास के चौदह वर्षों में हम चारों भाई अपने-अपने स्थान से परिस्थितियों से लड़ते रहे हैं, पर माता कैकई हर क्षण मरती रही हैं। अपनी एक भूल के कारण उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया| अपने चार बेटे खोए, अपना समस्त सुख खोया, यहां तक की अपने पति की मृत्यु का शोक भी भोगा|
फिर भी वे उस अपराधबोध से कभी मुक्त न हो सकीं। वनवास समाप्त हो गया तो परिवार के शेष सदस्य प्रसन्न और सुखी हो गए, पर वे कभी प्रसन्न न हो सकीं। अभी भी तिल-तिल अपने प्रायश्चित में जल रही हैं। एक स्त्री के लिए इससे कठोर दंड और क्या हो सकता है?
मैं तो सदैव यह सोच कर दुखी हो जाता हूँ कि मेरे कारण अनायास ही माँ को इतना कठोर दण्ड भोगना पड़ा। और तुम कहते हो कि उन्हें दंड क्यों नहीं दिया?
भगवान राम की आंखें डबडबा गई, और भरत ने भी मौन साध लिया।
फिर राम ने कहा उनकी भूल को अपराध समझना ही क्यों भरत! यदि मेरा वनवास न हुआ होता तो संसार भरत और लक्ष्मण जैसे भाइयों के अतुल्य भ्रातृप्रेम को कैसे देख पाता? मैंने तो केवल अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन किया था| पर तुम दोनों ने तो मेरे स्नेह में चौदह वर्ष का वनवास भोगा। वनवास न होता तो यह संसार सीखता कैसे कि भाइयों का सम्बन्ध होता कैसा है।
भरत के प्रश्न समाप्त हो गए थे। और दोनों भाई एक दूसरे के गले लगा कर रोने लगे।
Thebhaktitimes.com की टीम इस कहानी के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी को संदेश देना चाहती है कि जहाँ आज तिल भर की जगह के लिए भाई-भाई एक दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे हैं| वही यह कहानी (Lord Rama untold story ) हमें सीख देती हैं कि भातृत्व प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं है|
Disclaimer:– धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार| इस कथा की पुष्टि Thebhaktitimes.com की टीम नहीं करती हैं|