Jagannath puri rath yatra 2024 | जानें जगन्नाथ रथ यात्रा का पौराणिक महत्व और इस साल रथ यात्रा कब शुरू हो रही है

Jagannath puri rath yatra 2024
Jagannath puri rath yatra 2024 : भगवान जगन्नाथ जी का मंदिर आस्था और उपासना का सबसे बड़ा केंद्र हैं। यहाँ हर साल लाखों श्रद्दालु भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों को अपने जीवन काल में एक बार जगन्नाथ पुरी की यात्रा अवश्य देखनी चाहिए। यह रथ यात्रा किसी त्योहार से कम नहीं होती है, इसे पुरी के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में निकाली जाती है। चलिए जानते हैं जगन्नाथ पुरी मंदिर का महत्व, मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में और जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में।
जगन्नाथ पुरी मंदिर की पौराणिक कथा । Mythology of Jagannath Puri temple
कहते हैं, भगवान श्रीकृष्ण के देहावसान के बाद जब उनके पार्थिव शरीर को द्वारिका लाया जाता हैं, बलराम अपने भाई की मृत्यु से अत्यंत दुखी होते हैं और अपने दुःख को संयत (काबू) नहीं कर पाते, इस कारण वह भगवान श्रीकृष्ण एक पार्थिव शरीर को लेकर समुद्र में कूद जाते हैं। उनके पीछे देवी सुभद्रा भी कूद जाती हैं।
इसी समय पुरी के राजा इंद्रद्विमुना को स्वप्न (सपना) आता हैं कि भगवान श्री कृष्ण का पार्थिव शरीर समुद्र में तैर रहा है। उन्होंने तय किया कि वह वहाँ पर कृष्ण भगवान का एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाएंगे। देवदूत उन्हें स्वप्न में बोलते हैं कि कृष्ण के साथ उनके भाई बलराम और देवी सुभद्रा की लकड़ी की प्रतिमा भी बनाई जाये। और, कृष्ण की अस्थियों को उनकी प्रतिमा के पीछे छेद करके रखा जाये।
पुरी के राजा का सपना सच हुआ। उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की अस्थियाँ मिल गयीं। अब उन्हें इस बात की चिंता थी कि इतने विशाल मंदिर का निर्माण कौन करेगा? ऐसा कहा जाता है, तब भगवान विश्वकर्मा एक बढ़ई के रूप में प्रकट होते हैं और मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू करते हैं।
भगवान विश्वकर्मा ने मूर्ति निर्माण से पहले सभी को बोल दिया था कि उन्हें काम करते समय परेशान नहीं किया जाये, नहीं तो वे बीच में ही काम छोड़कर चले जायेंगे। भगवान विश्वकर्मा श्रीकृष्ण की मूर्ति को साक्षात् रूप में अधिक समय ले लेते हैं और मूर्ति बन नहीं पाती है। तब एक दिन राजा इन्द्रद्विमुना बढ़ई के कक्ष (रूम) का दरवाजा खोल देते हैं।
ऐसा होते ही भगवान विश्वकर्मा अंतर्धान (गायब) हो जाते हैं। इस कारण मूर्ति का निर्माण पूरा नहीं हो पाता, लेकिन राजा ऐसे ही मूर्ति को स्थापित कर देते हैं। देवदूतों के कहें अनुसार राजा मूर्ति के पीछे भगवान श्रीकृष्ण की अस्थियाँ रखते हैं और फिर मंदिर में विराजमान कर देते हैं।
तब से लेकर आज तक एक राजसी जुलूस तीन विशाल रथों में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और देवी सुभद्रा का निकाला जाता है। तीनों प्रतिमा हर 12 साल बाद बदली जाती है, नयी प्रतिमा भी अधूरी ही रहती है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर एकलौता मंदिर है, जहाँ तीनों भाई बहनों की प्रतिमा एक साथ है और सभी की उपासना की जाती हैं।

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा कब निकली जाती है । When is Jagannath Puri Rath Yatra held in hindi?
रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह (जून-जुलाई) में शुक्ल पक्ष (अमावस्या से पूर्णिमा तक का समय) की द्वितीया तिथि को निकलती है। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष के 11वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ रथ यात्रा का समापन होता है। 10 दिन तक चलने वाले इस रथ यात्रा महोत्सव में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। भगवान कृष्ण, उनके भाई और बहन सुभद्रा की प्रतिमा को सुंदर और विशाल रथ में बैठाकर गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता है।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2024 में कब निकाली जाएगी । Jagannath Puri Rath Yatra 2024 Date and Time
हर साल की भांति इस साल भी रथ यात्रा आषाढ़ माह (जून-जुलाई) के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन निकाली जाती हैं। इस साल रथ यात्रा 7 जुलाई 2024 रविवार को निकाली जायेगी।
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जगन्नाथ पुरी रथ का पूरा विवरण । Jagannath puri rath full information
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के लिए रथ के निर्माण का कार्य अक्षय तृतीया के दिन से शुरू हो जाता है। हर साल रथ को नये तरीकें से बनाया जाता है और सजाया जाता है।
क्रमांक | किसका रथ है | रथ का नाम | रथ में मौजूद पहिये | रथ की ऊंचाई | लकड़ी की संख्या |
1. | जगन्नाथ/श्रीकृष्ण | नंदीघोष/गरुड़ध्वज/ कपिलध्वज | 16 | 13.5 मीटर | 832 |
2. | बलराम | तलध्वज/लंगलाध्वज | 14 | 13.2 मीटर | 763 |
3. | सुभद्रा | देवदलन/पद्मध्वज | 12 | 12.9 मीटर | 593 |
- जगन्नाथ का रथ/श्री कृष्ण :- इस रथ की ऊँचाई 45 फीट होती हैं और इसमें 16 पहिये लगे होते हैं, जिसका व्यास 7 फीट होता है। पूरे रथ को लाल व पीले रंग के कपड़े से सजाया जाता। इस रथ का चालक दारुका है। रथ के शीर्ष पर जो झंडा लहराता है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी कहते है। रथ में चार घोड़े भी होते हैं। रथ में वर्षा, गोबर्धन, कृष्णा, नरसिंघा, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान व रूद्र विराजमान रहते है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, उसे शंखचुडा नागनी कहते है। इस रथ की रक्षा गरुड़ करता है।
- बलराम का रथ । Balaram’s chariot :- इस रथ की ऊँचाई 43 फीट होती हैं और इसमें 14 पहिये लगे होते है। इस रथ को लाल, नीले और हरे रंग के कपड़े से सजाया जाता है। रथ का चालक मताली है। रथ में गणेश, कार्तिक, सर्वमंगला, प्रलाम्बरी, हटायुध्य, मृत्युंजय, नाताम्वारा, मुक्तेश्वर, शेषदेव विराजमान रहते है। रथ के शीर्ष पर जो झंडा लहराता है, उसे उनानी कहते है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, उसे बासुकी नागा कहते है। रथ की रक्षा वासुदेव करते हैं।
- देवी सुभद्रा का रथ । Chariot of Goddess Subhadra :- इस रथ की ऊँचाई 42 होती है और इसमें 12 पहिये लगे होते हैं। रथ को लाल और काले रंग के कपड़े से सजाया जाता है। इस रथ का सारथी अर्जुन होता हैं। इसमें चंडी, चामुंडा, उग्रतारा, वनदुर्गा, शुलिदुर्गा, वाराही, श्यामकली, मंगला, विमला विराजमान होती है। जिस रस्सी से रथ को खींचा जाता है उसे स्वर्णचुडा नागनी कहते हैं। रथ के शीर्ष पर जो झंडा लहराता उसे नंद्बिक कहते हैं। रथ की रक्षा जयदुर्गा करता हैं।

इन रथों को हजारों श्रद्धालु मिलकर खींचते है। रथ यात्रा में में गये सभी लोग एक बार इस रथ को खीचना चाहते है, क्योंकि यही वह समय होता है जब जगन्नाथ जी को नजदीक से देखा जा सकता हैं। लोकआस्था के अनुसार रथ को खींचने से सारी मनोकामना पुरी होती है।
जगन्नाथ यात्रा के बाद रथों और हाथियों का क्या होता है? । Jagannath rath yatra ke baad rath kya hota hai
रथ महोत्सव की समापन के बाद रथ को तोड़ दिया जाता है और लकड़ी का इस्तेमाल मंदिर की रसोई में ईंधन के रूप में किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है, जहाँ प्रतिदिन हजारों लोगों को भोजन के रूप में प्रसाद वितरित किया जाता है। हाथियों को प्रबंधित भूमि पर अगले वर्ष के जुलूस के लिए वापस भेज दिया जाता है।
जगन्नाथ यात्रा विशेष क्यों हैं । Jagannath rath yatra mahatv । Jagannath Rath Yatra importance
वैसे तो सभी धार्मिक यात्राएँ विशेष होती हैं लेकिन जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा इसलिए विशेष है, क्योंकि इसमें भगवान की प्रतिमा को मंदिर से बाहर निकालकर रथ पर विराजमान किया जाता है और फिर भक्तों के दर्शन के लिए यात्रा आयोजित की जाती है। रथ यात्रा को देखने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से लाखों श्रद्धालु हर साल पुरी आते हैं।
पुरी में अब राजवंश के राजा निवास करते हैं, जो हर साल यात्रा के समय रथ के आगे सोने की झाड़ से मार्ग को बुहारते (साफ़) हैं।
भगवान जगन्नाथ का रथ वास्तुशिल्प का चमत्कार माना जाता हैं। रथ का निर्माण 42 दिनों में 4,000 से अधिक लकड़ी के टुकड़ों से किया जाता है। रथ का निर्माण करने वालों के पास रथ बनाने का वंशानुगत अधिकार है। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती हैं उस दिन बारिश जरूर होती है।

Jagannath puri rath yatra के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Important FAQs
रथ यात्रा क्या है? | What is Rath Yatra?
जगन्नाथ पुरी मंदिर में रथ यात्रा हिंदू धर्म की प्रमुख परंपराओं में से एक है। इसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ रथों पर विराजमान कर पुरी नगरी के विभिन्न स्थलों पर भक्तों के सामने दर्शन के लिए ले जाया जाता है।
रथ यात्रा कब होती है? | When does Rath Yatra take place?
जुलाई या अगस्त महीने में होती है।
रथ यात्रा का इतिहास क्या है? | What is the history of Rath Yatra?
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का इतिहास सन् १२२६ से जुड़ा है, जब भगवान जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण हुआ था।
रथ यात्रा का क्या मुख्य उद्देश्य हैं? | What is the main objective of Rath Yatra?
रथ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भक्तों में धर्मिक आदर्शों को स्थापित करना है।
रथ यात्रा में शामिल होने के लिए क्या प्रक्रिया है? | What is the procedure to join Rath Yatra?
रथ यात्रा में भाग लेने के लिए व्यक्ति को मंदिर प्रशासन की ओर से आमंत्रित किया जाता है।
रथ यात्रा में खींचे जाने वाले रथ कितने होते हैं? | How many chariots are there to be pulled in Rath Yatra?
रथ यात्रा में तीन रथ होते हैं, जो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियों को अलग-अलग रथों पर बिठाते हैं।
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