1. चार धाम यात्रा पर क्या आप भी जाना चाहते हैं? 2. Do you like Char Dham pilgrimage
चार धाम यात्रा:- सनातन अनुयायियों के लिए यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम सबसे पावन और पवित्र स्थलों में से एक हैं। इसे चार धाम यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। लोकश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले अनुयायियों को अपने जीवन काल में एक बार चार धाम यात्रा जरुर करनी चाहिए।
जो मनुष्य चार धाम यात्रा का दर्शन करने में सफल हो जाता है। वह सभी जन्मों के पाप से मुक्त हो जाता है। साथ ही वह जीवन-मरण के बंधन से पूर्णता मुक्त हो जाता है। लेकिन जीवन की आपाधापी में बहुत कम लोगों को ही चार धाम यात्रा का सौभाग्य मिल पाता है। इस लेख का उद्देश्य सिर्फ़ चार धाम यात्रा के महत्व को रेखांकित करना है।
इस लेख को पढ़ने के बाद अगर एक या दो लोग भी चार धाम यात्रा जाने की योजना बनाते हैं और योजना में सफल होते हैं। तो लेख लिखने का हमारा उद्देश्य सफल हो जाएगा।
तो चलिए शुरू करते हैं चार धाम यात्रा।
यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham)
हिमालय के पश्चिमी छोर पर पवित्र यमुनोत्री का मंदिर स्थित है। मंदिर प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ है, जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री मंदिर के पास ढेरों गर्म पानी की झीलें हैं। जो विभिन्न पूलों से होकर बहती हैं।
सबसे प्रसिद्ध सूर्य कुण्ड को माना जाता है। भक्तगण इसी कुंड में चावल, आलू और अन्य पदार्थों को कपड़े में बांधकर कुछ समय तक गर्म जल में रखते हैं, जिससे यह पक जाता है। पके हुए इन पदार्थों को भक्त प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य देव ने अपनी बेटी को आशीर्वाद देने के लिए गर्म जलधारा का रूप धारण किया था।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार यह पवित्र स्थान एक साधु असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने यहाँ पर अपनी आराध्य देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर माँ यमुना ने उन्हें दर्शन दिए थे। तब से यहाँ पर प्रतिवर्ष अनेक श्रद्धालु माँ यमुनोत्री (चार धाम यात्रा) के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी के आरंभ में करवाया था।
यमुनोत्री धाम कैसे जाएं (How to reach Yamunotri Dham)
यमुनोत्री धाम पहुँचने के लिए जानकीचट्टी से लगभग 6 किलोमीटर की पैदल खड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है। यमुनोत्री धाम पहुँचने के लिए आप रेलमार्ग, हवाई मार्ग या सड़क मार्ग तीनों में से कोई भी मार्ग अपनी सुविधानुसार जा सकते हैं। नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट 268 किमी है। नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश 250 किलोमीटर है तथा सड़क मार्ग के लिए दिल्ली समेत अनेक राज्यों से बस सेवा उपलब्ध है। बस से आप हरिद्वार-ऋषिकेश उतरकर यमुनोत्री धाम (चार धाम यात्रा) की यात्रा शुरू कर सकते हैं।
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गंगोत्री धाम (Gangotri Dham)
गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थल है। ऐसा कहा जाता है कि स्वर्ग से उतरकर देवी गंगा ने सर्वप्रथम धरती का स्पर्श गंगोत्री में ही किया था। हिंदू धर्म में गंगोत्री को मोक्षप्रदायनी माना गया है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग अपने पूर्वजों का पिंड दान करने के लिए यही आते हैं। लोक आस्था के अनुसार गंगोत्री जल सबसे पवित्र जल है। इस जल का उपयोग शुभ कार्यों में किया जाता है।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्राचीन काल में राजा भगीरथी ने अपने पूर्वजों को उनके द्वारा किये गए पापों से मुक्ति दिलाने के लिए गंगोत्री तट (वर्तमान नाम) पर भगवान शिव की आराधना की थीं। राजा भागीरथी चाहते थे कि देवी गंगा धरती पर आये और उनके पवित्र जल से अपने पूर्वजों को उनके पापों से मुक्त करा सकें। अंततः राजा भागीरथी ने अपने पूर्वजों को उनके पापों से मुक्ति दिलाई।
गौरतलब है कि उतराखंड में गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री धाम के समीप गोमुख नामक स्थान से होता है। उत्तराखंड में गंगा नदी को भागीरथी के नाम से जाना जाता है। जब भागीरथी नदी देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलती हैं तो वहां से आगे इस नदी को गंगा नदी के नाम से जाना और पूजा जाता है।
गंगोत्री धाम कैसें जाएँ (How to go Gangotri Dham)
गंगोत्री धाम का रास्ता ऊँचें पहाड़ों से होकर गुजरता है इसलिए यहाँ तक हवाई या रेल की सुविधा नहीं है। यदि आप रेल मार्ग से आना चाहते हैं तो आप ऋषिकेश रेलवे स्टेशन पर उतर कर आगे की यात्रा बस से शुरू कर सकते हैं या निजी गाड़ी से। इसी तरह आप हवाई मार्ग से आते हैं तो आप देहरादून हवाई अड्डे पर उतरकर आगे की यात्रा बस या टैक्सी से शुरू कर सकते हैं।
बता दें कि हरिद्वार और ऋषिकेश से बस सेवा निरंतर उपलब्ध रहती है। जो एक सुगम और सरल मार्ग है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए प्रत्येक राज्य ने गंगोत्री के लिए बस सेवी शुरू की हैं। आप अपने राज्य से भी बस पकड़ कर सीधे गंगोत्री (चार धाम यात्रा) उतर सकते हैं।
केदारनाथ धाम
केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है। इस मंदिर का निर्माण जगद्गुरू शंकराचार्य ने करवाया था। स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मंदिर अन्य मंदिरों से भिन्न है। ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ दर्शन से आपके समस्त पापों का नाश होता है।
ये मान्यता भी प्रचलति है कि, ‘जो श्रद्धालु केदारनाथ दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है। इसलिए कहा जाता है कि केदारनाथ के दर्शन के बाद ही बद्रीनाथ की यात्रा (चार धाम यात्रा) शुरू करो।’
केदारनाथ मंदिर मंदाकिनी नदी के तट पर बना हुआ हैं। मंदिर के पीछे अनेक कुंड हैं, जिनमें आचमन तथा तर्पण किया जा सकता है। जल प्रलय में केदारनाथ मंदिर सुरक्षित रहा।
केदारनाथ धाम कैसे जाएँ (How to reach Kedarnath Dham)
• हवाई मार्ग:- समयाभाव की स्थिति में आप देहरादून, ऋषिकेश और गुप्तकाशी हवाई अड्डे से हेलीकाप्टर लेकर सीधे केदारनाथ मंदिर पहुँच सकते हैं।
• राजमार्ग सेवा:- आप बस या निजी वाहन की मदद से यात्रा शुरू कर सकते हैं। राजमार्ग के लिए गुप्तकाशी या रुद्रप्रयाग से यात्रा शुरू करनी पड़ती है।
• पैदल यात्रा:- धार्मिक दृष्टि से पैदल यात्रा आस्था के केंद्र में है। पैदल यात्रा धार्मिक अनुभव के साथ सुकून भी देगी। आप गौरीकुंड (14 किलोमीटर) या सोनप्रयाग (21 किलोमीटर) से यात्रा शुरू कर सकते हैं और पर्वतीय मार्ग से धाम पहुँच सकते हैं।
• पालकी सेवी:- बड़े बुजुर्गों के लिए पालकी सेवा भी उपलब्ध है।
यदि आप सच में केदारनाथ यात्रा (चार धाम यात्रा) का धार्मिक अनुभव लेना चाहते हैं तो आप पैदल यात्रा का मार्ग तय करके केदार धाम पहुँचें। इस यात्रा में आपको अनेक अनुभव मिलेंगे।
बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham)
बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित एक भव्य मंदिर है। पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी गंगा ने मानव जाति की रक्षा के लिए धरती पर आना स्वीकार किया तो पृथ्वी पर हलचल मच गई, क्योंकि मां गंगा के प्रवाह को सहन करने की क्षमता धरती में नहीं थी।
तब गंगा मां ने स्वयं को बारह भागों विभक्त किया। इन्हीं में से अलकनंदा भी एक है, जो बाद में भगवान विष्णु का निवास स्थान बना जिसको बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है।
इस पवित्र स्थल को भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि के नाम से भी जाना जाता हैं। इस धाम के बारे में प्रचलित कहावत है कि, “जो जाए बद्री, वो न आये ओदरी” अर्थात् जो भक्त बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है। उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं पड़ता। प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
बदरी वृक्ष की कथा (Badri Vriksh Katha)
एक समय श्रीहरी विष्णु तपस्या में लीन थे तभी अचानक बहुत हिमपात होने लगा। तपस्यारत भगवान विष्णु बर्फ से पूरी तरफ ढकने लगें। भगवान विष्णु की इस दशा को देखकर माता लक्ष्मी ने उस स्थान पर एक विशालकाय बेर का रूप धारण किया और हिमपात को अपने ऊपर सहन करने लगीं। भगवान विष्णु को धूप, बरसात, तूफान और हिमपात से बचाने के लिए कठोर तपस्या करने लगीं। जब भगवान विष्णु ने अपनी तपस्या को पूर्ण किया तो देखा कि देवी लक्ष्मी पूरी तरह हिमपात से ढकी हुई हैं।
तब श्रीहरी विष्णु ने माँ लक्ष्मी के तप को देखकर कहा, ‘हे देवी! आपने मेरे बराबर ही तप किया है इसलिए आज से इस पवित्र स्थल पर मुझे आपके साथ ही पूजा जाएगा। आपने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है इसलिए अब से मुझे ‘बदरी के नाथ’ यानी बद्रीनाथ (चार धाम यात्रा) के नाम से जाना जाएगा। इस तरह श्रीहरी विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा।
बद्रीनाथ धाम कब और कैसे जाएँ (When and how to visit Badrinath Dham)
बद्रीनाथ धाम जाने का सबसे अच्छा महीना मई से जून और सितंबर से अक्टूबर के बीच होता है। चूँकि बद्रीनाथ धाम पहाड़ों में हैं इसलिए मानसून मौसम में जाने से बचना चाहिए। दूसरा सर्द मौसम में भारी बर्फ़बारी के कारण यहाँ का तपमान न्यूनतम डिग्री तक पहुँच जाता है। इसलिए सर्द मौसम में भी जाने से बचना चाहिए।
आप यहाँ पर हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जा सकते हैं। हवाई मार्ग के लिए जॉली ग्रांट हवाई अड्डा बद्रीनाथ (चार धाम यात्रा) का निकटतम हवाई अड्डा है जो 314 किमी की दूरी पर स्थित है। रेल मार्ग के लिए निकटम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से आगे की यात्रा आपको सड़क मार्ग से करनी होगी।