महर्षि वाल्मीकि डाकू से आदिकवि कैसे बने? Biography of Maharishi Valmiki 2023

0
Biography of Maharishi Valmiki

Biography of Maharishi Valmiki: बहुत कम लोग जानते हैं कि रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि एक डाकू थे। यदि आपको भी यह नहीं पता तो यह लेख आपके लिए ही हैं। इस लेख में हम महर्षि वाल्मीकि के जीवन के अनछुए पहलुओं पर ही बात करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।

सनातन धर्म में वाल्मीकि जी को आदिकवि या महान रचनाकार के रूप में जाना जाता हैं। उनके द्वारा रचित रामायण को वाल्मीकि रामायण के नाम से जाना जाता है। रामायण एक महाकाव्य ग्रंथ हैं। यह ग्रंथ हिंदुओं का पथप्रदर्शक ग्रंथ भी हैं, जो भगवान श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, संस्कृति से, समाज से आदि से परिचित करवाता है। लेकिन इतने महान ग्रंथ की रचना करने वाले आदिकवि अपने जीवन के आरंभिक वर्षों में एक डाकू थे। उनका वास्तविक नाम रत्नाकर था।

Biography of Maharishi Valmiki

इस घटना ने डाकू से साधु बना दिया (This incident transformed him from a robber to a saint.)

किंवदंती के अनुसार एक बार नारद मुनि जंगल से जा रहे थे। तभी डाकू रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया और उन्हें बंदी बना लिया। नारद मुनि ने बड़े प्रेम भाव से रत्नाकर से पूछा तुम इस तरह का अनैतिक कार्य क्यों करते हों? रत्नाकर ने नारद मुनि के प्रश्न का उत्तर आदरपूर्वक दिया और कहा कि यह सब कार्य मैं अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए करता हूँ।

इस पर नारद मुनि ने कहा कि जिस परिवार के लिए तुम नित्य अनैतिक कार्य करते हो, क्या वह तुम्हारे इन अनैतिक कार्यों में पाप का भागीदार बनने को तैयार है। नारद मुनि के उत्तर (Biography of Maharishi Valmiki) ने रत्नाकर को विचलित किया और वह नारद मुनि को एक पेड़ से बांधकर इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अपने घर गयें।

रत्नाकर ने घर पहुँच कर परिवार के सभी लोगों से यह सवाल किया तो उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उनके अनैतिक कार्यों के लिए कोई भी पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं। वह वापस जंगल में नारद मुनि के पास जाते हैं और उन्हें स्वतंत्र कर उनसे क्षमा मांगते हैं। नारद मुनि ने जाने से पूर्व रत्नाकर को उपदेश दिया कि तुम राम-राम का जप करों। लेकिन उनके मुख से राम-राम की जगह ‘मरा-मरा’ शब्द निकल रहा था। तब नारद मुनि ने कहा तुम मरा-मरा ही बोलो इसी से तुम्हें एक दिन भगवान राम के दर्शन होंगे।

वाल्मीकि जी का वाल्मीकि नाम कैसे पड़ा? (How did Valmiki ji get the name Valmiki?)

वाल्मीकि जी का वास्तविक नाम रत्नाकर था लेकिन इनका नाम वाल्मीकि कैसे पड़ा इसकी एक रोचक कथा है। एक बार वाल्मीकि जी घोर तपस्या में लीन थे। ऐसा कहा जाता है कि उनके समाधिस्थ शरीर पर दीमकों ने अपनी बाम्बियां बना लीं। दीमकों की बाम्बियों को संस्कृत में वाल्मीक कहा जाता हैं। किन्तु वाल्मीकि जी को इसका तनिक भी आभास नहीं हुआ। वह तपस्या में लीन रहें। तभी आकाशवाणी होती है, ‘तुमने ईश्वर के दर्शन कर लिए हैं। बाम्बियां तुम्हारी देह पर रेंगती रही और तुम्हें इसका आभास तक नहीं हुआ। तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। अब से संसार में तुम वाल्मीकि (Biography of Maharishi Valmiki) नाम से जाने जाओगे।

महर्षि वाल्मीकि जी का परिवार (Maharishi Valmiki’s family)

महर्षि वाल्मीकि के पिता का नाम वरुण तथा माता का नाम चार्षणी था। यह अपने भाइयों में सबसे छोटे थे। यह कुल दस भाई थे। वाल्मीकि जी को प्राचेतस नाम से भी जाना जाता है। मत्स्य पुराण में महर्षि वाल्मीकि (Biography of Maharishi Valmiki) जी को भार्गवसप्तम् नाम से स्मरण किया जाता हैं तथा भागवत में उन्हें महायोगी कहा गया हैं। सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित दशमग्रन्थ में वाल्मीकि जी को ब्रह्मा का प्रथम अवतार कहा गया हैं।

भिलानी ने क्यों चुराया वाल्मीकि जी को (Why did Bhilani steal Valmiki ji?)

एक प्रचलति किंवदंती के अनुसार नि:संतान भिलानी ने वाल्मीकि जी को चुरा लिया था। भिलानी परिवार के पालन पोषण के लिए जंगल से गुजर रहे लोगों से लूटपाट करती थीं। जिसका गहरा प्रभाव बालक रत्नाकर (वाल्मीकि जी) पर भी पड़ा। यही कारण है कि जीवन के आरंभिक वर्षों में वाल्मीकि जी भी लूटपाट करते थे।

वाल्मीकि रामायण की रचना कैसे हुई? (How was Valmiki Ramayana composed?)

ऐसा कहा जाता है कि क्रोंच पक्षी की हत्या करने वाले शिकारी को इन्होंने श्राप दिया था। श्राप देते समय इनके मुख से श्लोक निकला। फिर इनके आश्रम में ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि मेरे ही आशीर्वाद के कारण तुम्हारे मुख से ऐसी वाणी निकली है। इसलिए आप मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के संपूर्ण जीवन का वर्णन श्लोक में करें। इस प्रकार ब्रह्माजी के आशीर्वाद पर ही महर्षि वाल्मीकि (Biography of Maharishi Valmiki) ने रामायण महाकाव्य की रचना की।

भगवान श्री राम के त्यागने पर माता सीता वाल्मीकि आश्रम में रही थीं। (Biography of Maharishi Valmiki)

ऐसा कहा जाता है कि जब भगवन श्री राम ने माता सीता का त्याग कर दिया था। तब माता सीता महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रही थीं और आश्रम में ही अपने दोनों पुत्रों लव-कुश को जन्म दिया था। यहीं पर उन्हें वन देवी के नाम से जाना गया।

यह भी पढ़ें: क्लिक करें

वाल्मीकि रामायण का संक्षिप्त परिचय (Brief introduction of Valmiki Ramayana)

वाल्मीकि रामायण, भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण और प्रमुख काव्य है, जो सनातन धर्म की प्रमुख महाकाव्य (Biography of Maharishi Valmiki) ग्रंथों में से एक है। यह महाकाव्य भगवान राम की कहानी पर आधारित है और महाकवि वाल्मीकि द्वारा संगृहीत है।

रामायण कथा भगवान श्रीराम, उनकी पत्नी माता सीता, उनके भक्त हनुमान और अन्य कई प्रमुख पात्रों के जीवन को बताती है। रामायण चार युगों में बाल्यकांड, आयोध्याकांड, अरण्यकांड और किष्किंधाकांड के चार भागों में विभाजित है। यह प्रमुखतः चार भावनाओं – शृंगार (राम-सीता का प्रेम), वीर (भगवान राम की वीरता), भक्ति (हनुमान और अन्य भक्तों की भक्ति) और मोक्ष (धार्मिक और आध्यात्मिक मोक्ष) को बड़े सहज ढंग से प्रस्तुत करती है।

वाल्मीकि रामायण के अलावा अन्य प्रचलित ग्रंथ (Apart from Valmiki Ramayana, other popular texts)

महाकाव्य के रचयिता तुलसीदास हैं। यह महाकाव्य अवधी भाषा में लिखा गया है।
कम्ब रामायण के रचयिता कम्बनाट्टाम रामायण हैं। यह ग्रंथ तमिल भाषा में लिखा गया है और दक्षिण भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

 

(Disclaimer: Biography of Maharishi Valmiki की सभी जानकारी इंटरनेट और पत्र-पत्रिकाओं में छपी जानकारी को संग्रहित करके यहाँ प्रस्तुत किया गया है|द भक्तिटाइम्स.कॉम इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)

 

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *