Somvar vrat katha सुनने से पूरी होती है हर मनोकामना | सावन सोमवार व्रत का लाभ 2024

Somvar vrat katha
Somvar vrat katha :एक समय की बात है, एक बड़े नगर में एक साहूकार रहता था। उसके पास धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। विवाह के कई वर्षों बाद भी उसके कोई संतान नहीं हुई, इस वजह से वह बहुत दुखी था। संतान प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार नियमित भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना करता और व्रत रखता।
उसकी अगाध भक्ति देखकर माता पार्वती प्रसन्न हुई और उन्होंने भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया। माता पार्वती के निवेदन को आदरपूर्वक स्वीकार कर भगवान शिव ने कहा कि “हे पार्वती, इस संसार में हर व्यक्ति को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में कर्मों के हिसाब से जो लिखा है उसे वह भोगना ही पड़ता है। लेकिन माँ पार्वती ने फिर भी शिव जी से साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया।
माँ पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने साहूकार को संतान प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसकी संतान की आयु केवल सोलह वर्ष होगी। उसी रात भगवान शिव ने उस व्यापारी को स्वप्न में दर्शन दिए और उसे संतान प्राप्ति का वरदान दिया। साथ ही भगवान शिव ने उसे उसके पुत्र की अल्पायु की बात भी बताई।

भगवान शिव के वरदान से साहूकार को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस ख़ुशी को कम कर दिया। साहूकार ने संतान की अल्पायु की चिंता छोड़ पहले की तरह सोमवार के दिन नियमित भगवान शिव का व्रत करता रहा। कुछ माह बाद उसकी पत्नी ने सुंदर बालक को जन्म दिया और बालक के जन्म के बाद घर में खुशियाँ भर गयी।
पुत्र जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया लेकिन साहूकार को पुत्र प्राप्ति की अधिक ख़ुशी नहीं हुई, क्योंकि उसे पुत्र की अल्पायु के रहस्य का पता था। जब पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो व्यापारी ने पुत्र को अपने मामा के साथ बनारस पढ़ने के लिए भेज दिया। लड़का अपने मामा के साथ बनारस शिक्षा प्राप्ति के लिए चल दिया। रास्ते में जहाँ भी मामा-भांजे विश्राम के लिए रुकते, वहीँ विधिवत पूजा करने के बाद यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते।
लंबी यात्रा के बाद मामा-भांजे एक सुंदर नगर में पहुँचे। उस दिन नगर के राजा की पुत्री का विवाह था, जिस कारण पूरे नगर को फूलों से सजाया गया था। समय पर बारात आ गयी लेकिन लड़के का पिता अपने बेटे के एक आँख से काना होने के कारण अत्यंत चिंतित था। उसे भय था कि इस बात का पता चलने पर कहीं कन्यापक्ष (लड़की वाले) के लोग विवाह से इंकार न कर दें।
उसे अपनी बदनामी का भय भी था। जब वर के पिता ने साहूकार के पुत्र को देखा तो उसके दिमाग में आया कि क्यों न वह लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दें। विवाह होने के बाद इस लड़के धन दौलत देकर विदा कर देगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाएगा।
वर के पिता ने लड़के के मामा से अपनी समस्या के संबंध में बात की। लड़के के मामा ने धन के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। साहूकार के लड़के को दूल्हें का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया।
राजा ने अपनी पुत्री को ढेर सारा धन देकर विदा किया। विवाह के बाद जब लड़का राजकुमारी के साथ अपने नगर लौट रहा था तब वह झूठ छिप न सका। साहूकार के लड़के ने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया था कि ‘प्रिय राजकुमारी, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं तो बनारस पढ़ने के लिए जा रहा हूँ और अब तुम जिस लड़के की पत्नी बनोगी। वह एक आँख का काना है|
जब राजकुमारी को इस झूठ का पता चला तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इंकार कर दिया और वापस अपने पिता के पास आ गयी।
उधर लड़का और उसका मामा दोनों बनारस पहुँच गए और गुरुकुल में पढ़ाई शुरू कर दी। जब लड़के की आयु 16 वर्ष की हुई तो उसने यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर उसने ब्राह्मण भोज भी कराया। पूजा पाठ से निपटने के बाद वह विश्राम के लिए रात्रि में अपने शयनकक्ष में गया। भगवान शिव के कहें अनुसार उसी रात लड़के के प्राण-पखेड़ू उड़ गए। सुबह मामा अपने एकलौते भांजे को मृत देखकर रोने-पीटने लगा।
लड़के के मामा के रोने का विलाप भगवान शिव और पार्वती जी ने भी सुना। पार्वती जी ने शिव जी से कहा, भगवान मुझे इसका रोना सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को दूर करें ताकि ये रोना बंद करें।
माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव पार्वती माता के साथ अदृश्य रूप में पास जाकर देख तो भगवान शिव ने कहा, यह तो उसी व्यापारी का लड़का है जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का आशीर्वाद दिया था। इसकी आयु पूरी हो चुकी है।

माता पार्वती ने फिर आदिदेव शिव से विनती कर उस लड़के को जीवन देने का आग्रह किया। माता पार्वती के कहने पर शिव जी ने उस लड़के को जीवित होने का आशीर्वाद दिया और कुछ ही पल में वह लड़का जीवित होकर उठ बैठा।
शिक्षा पूरी करने के बाद लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुँचे जहाँ पर उसका विवाह राजा की कन्या से हुआ था। उस नगर में भी मामा भांजे ने यज्ञ का आयोजन किया। जब राजा को इस बात की जानकरी हुई कि उनके नगर में कोई राहगीर यज्ञ का आयोजन कर रहा है तो राजा स्वयं यज्ञ स्थल पर पहुँचें, जहाँ पर राजा ने मामा-भांजें को पहचान लिया।
यज्ञ के सफल आयोजन के बाद राजा मामा-भंजें को महल ले गये। कुछ दिन अतिथि सत्कार करने के बाद धन, वस्त्र आदि देकर अपनी बेटी को उनके साथ विदा कर दिया।
इधर घर पर लड़के के माता-पिता अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। दोनों ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का दुखद समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। लेकिन जैसे ही दोनों ने अपने बेटे के जीवित वापस लौटने का समाचार सुना तो दोनों खूब प्रसन्न हुए। दोनों पति-पत्नी अपने रिश्तेदारों के साथ नगर के द्वार पर स्वागत के लिए पहुँचे।
अपने बेटे के साथ पुत्रवधू को देखकर दोनों की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। दोनों ने मिलकर पुत्रवधू का स्वागत किया। उसी रात भगवान शिव ने एक बार फिर व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा, ‘मेरे परम भक्त मैं तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को दीर्घायु प्राप्त की है। पुत्र की लंबी आयु सुनकर व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।
somvar vrat katha सुनने के लाभ
भगवान शिव का भक्त होने तथा सोमवार का व्रत करने से व्यापारी की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं, इसी प्रकार जो भक्त सच्चे मन से सोमवार का विधिवत व्रत, पूजन और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
संक्षेप में : इस लेख में भगवान शिव की संपूर्ण कथा, सोमवार व्रत, सोमवार व्रत की कथा, भगवान शिव पार्वती कथा का विस्तार से चित्रण किया गया है|
Declaimer: Somvar vart katha लेख को लिखते समय विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं की मदद ली गयी हैं| जो महज एक सूचनात्मक लेख हैं| अधिक जानकारी के लिए किसी विशेषज्ञ से सलाह लें|