2024 में होली कब है? होली का पौराणिक महत्व और क्यों खेली जाती है होली जानें?
2024 में होली कब है: रंगों का पर्व होली सनातन अनुयायियों का प्रसिद्ध पर्व हैं। यह पर्व प्रेम और उल्लास के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन लोग आपसी गिले शिकवे भूलाकर एक दूसरे को रंग लगा भाईचारा का संदेश देते हैं। इस पर्व को उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब आदि में अलग तरीके से मनाते हैं।
चलिए जानते हैं 2024 में होली कब है?
कब मनाया जाता है होली का त्योहार? (When is the festival of Holi celebrated?)
होली पर्व वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है और इसे फागुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो मार्च या अप्रैल के बीच होता है।
साल 2024 में होली का शुभ मुहूर्त कब है? (When is the auspicious time of Holi in the year 2024?)
होली का त्यौहार विक्रम संवत 2080 अर्थात फागुन माह की पूर्णिमा तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 24 मार्च को प्रातः 9:54 से प्रारंभ होगी।इस तिथि का समापन 25 मार्च दोपहर 12:29 पर होगा।
विवरण | |
विक्रम संवत | 2080 |
मास | फागुन |
पूर्णिमा तिथि | 24 मार्च |
प्रारंभ समय | प्रातः 9:54 बजे |
समापन समय | 25 मार्च, दोपहर 12:29 बजे |
कब करें होलिका दहन 2024 (When to do Holika Dahan 2024)
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 24 मार्च शाम 7:19 से लेकर रात्रि 9:38 तक है तथा दूसरा मुहूर्त रात्रि 11:13 से लेकर रात्रि 12:27 मिनट तक है।
शुभ मुहूर्त | तिथि | समय (प्रारंभ से समापन) |
पहला मुहूर्त | 24 मार्च | शाम 7:19 से रात्रि 9:38 तक |
दूसरा मुहूर्त | 24 मार्च | रात्रि 11:13 से रात्रि 12:27 तक |
2024 में होली पूजा कैसे करें? (How to worship in Holi 2024?)
- स्नान करना।
- पूजन के लिए सूखा नारियल, गेहूं की बालियां, और पीली सरसों का प्रयोग।
- उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठना।
- गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाना।
- पूजा सामग्री को कलश में रखना।
- जल से हस्त प्रच्छालन करना और पूजा प्रारंभ करना।
- भगवान को रोली, मोली, पुष्प, अक्षत चढ़ाना।
- पूजा के बाद भगवान की प्रतिमा के चारों ओर परिक्रमा करना।
होली की पौराणिक कथा (What is the mythology of Holi?)
वैसे तो होली (2024 में होली कब है) की कई कथाएं प्रचलित है। एक प्रमुख पौराणिक कथा के अनुसार चिरकाल में ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति से दो संतान हुई। एक का नाम हिरण्याक्ष और दूसरे का नाम हिरण्यकश्यप था। हिरण्याक्ष ने अपने बल से पृथ्वी को अपने आधीन कर लिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह का रूप लेकर हिरण्याक्ष से पृथ्वी को छुड़वाया और बाद में युद्ध करते हुए हिरण्याक्ष का वध कर दिया।
पहले हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का परम भक्त था। परंतु अपने भाई हिरण्याक्ष का वध होने के बाद हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का निंदक (विरोधी) हो गया। अब वह भगवान् विष्णु से अपने भाई के वध का बदला लेना चाहता था, इसलिए उसने अपने राज्य हिरण्यकरण का नाम हरी द्रोही रख दिया।
वर्तमान में इस राज्य का नाम हरदोई है जो उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। हरदोई में जो भी भगवान विष्णु की पूजा या स्तुति करता था हिरण्यकश्यप उसे मार देता था।
पुत्र के रूप में प्रहलाद ने हिरण्यकश्यप के घर जन्म लिया। बाल्यावस्था से ही वह भगवान हरी का परम उपासक बन गया। हिरण्यकश्यप अपने पुत्र के हरी मोह के कारण उसकी हत्या करने का कई बार प्रयास भी किया। परंतु वह अपने हर प्रयास में असफल रहा।
अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन से मदद मांगी जिसका नाम होलिका था। होलिका के पास एक विशेष प्रकार की चुनरी थी जिसे ओढ़ कर ( शरीर को ढक कर) आग में बैठने पर वह नहीं जलेगी। होलिका (2024 में होली कब है) चुनरी ओढ़ कर अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गयी। अपनी बुआ की गोद में बैठकर भी प्रहलाद हरी जाप करते रहें। भगवान हरी की कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ लेकिन होलिका जलकर राख हो गयी।
आज भी उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में वह कुंड स्थित है, जिसमें होलिका प्रहलाद को लेकर बैठी थी।
प्रहलाद को सही सलामत देख हिरण्यकश्यप आग बबूला हो गया और हरि को युद्ध के लिए लालकारने लगा तब भगवान विष्णु ने नरसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया तथा उस राज्य की प्रजा एक दैत्य राजा के चंगुल से स्वतंत्र हो गई। तब से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।
होली की पौराणिक कथा भगवान कृष्ण के संबंध में (Holi mythology related to Lord Krishna)
एक कथा के अनुसार बाल्यकाल में कृष्ण ने अपनी माता से पूछा कि राधा का रंग गोरा है और मेरा रंग काला क्यों है? राधा का रंग भी मेरे जैसा हो जाये ऐसा मैं क्या करूं? हँसी ठिठोली में माँ यसोदा ने कहा कि राधा के मुँह रंग मल दो तो वह भी तुम्हारे जैसी हो जाएगी।
बालक कृष्ण ने राधा जी के मुँह पर रंग और गुलाल मल दिया। गुस्से में राधा जी ने कृष्ण जी को खदेड़कर लट्ठ से मारना शुरू किया। इसके बाद से राधा और गोपियों के साथ भगवान कृष्ण ने होली (2024 में होली कब है) खेलना प्रारंभ किया। आज भी मथुरा वृंदावन मे होली को लट्ठमार होली के नाम से मनाया जाता है। उसी दिन से यह त्योहार मनाया जाने लगा यह दिन फागुन माह की पूर्णिमा का दिन था।
होली पर्व के अन्य नाम
- मध्य क्षेत्र में होली को रंग पंचमी के नाम से मनाया जाता है।
- ब्रज क्षेत्र में इसे लठमार होली के नाम से जाना जाता है यहाँ पर होली का त्योहार पूरे 15 दिन तक चलता है।
- दक्षिण गुजरात में आदिवासी क्षेत्र के लोग इस त्योहार को बड़ी धूमधाम से मानते है।
- छत्तीसगढ़ में लोकगीत गाकर रंग पंचमी के नाम से इस त्योहार को मनाते हैं।
- उत्तर भारत में इस त्योहार को फगुआ गाकर लोक गीत (अवध में होली खेले रघुवीरा) गाकर रंगों के साथ मानते हैं।
धुलेंडी 2024 में कब है? (When is Dhulendi in 2024?)
24 मार्च (2024 में होली कब है) रात्रि को होलिका दहन के बाद अगले दिन धुलेंडी अर्थात् 25 मार्च को रंगोत्सव मनाया जाता है।
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